Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-29)#कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:-


राज तो जैसे आसमान से गिरा और धरती पर आ पड़ा।


"इतना बड़ा धोखा अंकल ने पैसों के लिए माली की बेटी को अभिनय करने के लिए भेजा। ताकि मैं डर जाऊं । ओहहह अंकल को पता था मुझे भूत प्रेतों पर यकीन है उनको एक्सप्लोरर करना मुझे अच्छा लगता है तभी उन्होंने ये जाल बुना परी को चंद्रिका बनाकर मेरे पीछे लगा दिया ताकि मैं इसी में उलझा रहूं पर कहते हैं जो जैसा करता है वो वैसा ही भरता है । भगवान ने उन्हीं के बुने हुए जाल को सच कर दिखाया।"

उसको शास्त्री जी की बातों पर विश्वास था तभी उसने घर का दरवाजा खटखटाया।अंदर से आवाज आई "कौन"

लेकिन वह चुप रहा ।तभी कुछ क्षणों बाद किशनलाल ने दरवाजा खोला और सामने राज को खड़ा देखकर एक दम सकपका गया और बोला,"बाबू आप और यहां? कोई काम था क्या मुझे कहलवाया होता तो मैं स्वयं ही आ जाता ।"


"अरे नहीं किशनलाल ऐसी बात नहीं है। दरअसल तुम परी के लिए दुखी हो ना तो उसी का उपाय करने के लिए तुम्हें कोठी पर बुलाया है।"


*मैं समझा नहीं बाबू"


"अरे तुम और तुम्हारी पत्नी उस दिन अपनी बेटी के पीछे पीछे जा रहे थे और वो लाल हवेली में चंद्रिका बनकर महल के खंडहरों तक पहुंच गई थी ना बस वो ही बात के लिए हमारे यहां शास्त्री जी आये है उन को पिछली बातों का ज्ञान हो जाता है उनके अनुसार चंद्रिका का जन्म तुम्हारे यहां परी के रूप में हुआ है उसके तत्कालीन जीवन को एक किताब के जरिए बता रहे हैं जो हमें लाल हवेली में मिली थी।"


"जी बाबू साहब मैं परी और घरवाली दोनों को लेकर आ जाऊंगा।"


राज किशनलाल को संदेशा देकर उल्टे पांव घर की ओर लौट पड़ा।वह रास्ते में यही सोचता था रहा था कि आखिरकार अंकल को ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी थी जो पैसों की इतनी जरूरत पड़ गई । मैंने तो वैसे भी सारा कुछ उनके हाथों में सौंप रखा था चाहे वो कितने भी पैसे अकाउंट से ले सकते थे फिर ऐसे प्रपंच करने की क्या जरूरत थी।

वह सोचता सोचता कोठी तक पहुंच गया । मेन गेट खोलकर वह अंदर चला गया ।उसने भूषण प्रसाद के कमरे में झांक कर देखा तो वे बेख़बर सो रहे थे । उन्हें क्या पता था कि उन्होंने जो जाल बिछाया था उस पर से पर्दा हट चुका है।

वह अपने कमरे में आकर बिस्तर पर लेट गया और मन में विचार करने लगा कि एक बार ये गुत्थी सुलझ जाए तो मैं अंकल से एक बार पूछूंगा ज़रूर कि कहां कमी रह गई थी मेरी इज्जत में जो आप को ये काम करना पड़ा।


यही सोचते-सोचते उसकी आंख लग गई ।रात देर से सोने से राज सुबह देर तक सोता रहा ।दो बार नयना भी जगा चुकी थी पर राज टस से मस नहीं हुआ था।उसके एक घंटे बाद भूषण प्रसाद स्वयं राज को जगाने आये और बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले," बेटा राज , क्या बात है? आज तो बड़ी देर कर दी उठने में देखो मैं तो नाश्ता कर के तैयार भी हो गया हूं साईट पर जाने के लिए क्यों कि शास्त्री जी शाम तीन बजे पहुंच जाएंगे कोठी पर उससे पहले किशनलाल को भी कहकर आना है क्योंकि आज वो बागवानी सम्हालने के लिए कोठी पर तो आयेगा नहीं।"


"अंकल आप रहने दें मैं बोल आया हूं कल रात ,खाना खाने के बाद मुझे नींद नहीं आ रही थी इसलिए मैं चहलकदमी करने के लिए बाहर चला गया था तो लगे हाथों ये काम भी कर ही आया।"

"ये तुमने ठीक ही किया बेटा ,वरना मुझे साइट पर जाते हुए जाना पड़ता। चलों अब उठों इतनी देर खाली पेट नहीं रहते बीमार पड़ जाओगे।"

यह कहकर भूषण प्रसाद उठकर कमरे से बाहर चले गये । राज सोचता ही रहा कि अंकल के लाड़ प्यार को देखकर तो ऐसा नहीं लगता कि वो ऐसा भी कर सकते हैं ।कितना प्यार करते हैं वो मुझे अभी भी।

वह बिस्तर से उठा और। नित्यकर्म से निवृत्त होकर नाश्ते की टेबल पर आ गया । नयना ने उसके लिए पनीर के परांठे और खीर बनाई थी ।उसने मक्खन से परांठे खाकर बाद में खीर का आनंद लिया।

नाश्ता कर के वह थोड़ी देर के लिए हाल में जा कर बैठ गया ।उसने देखा नयना गुस्से में भरी बैठी शायद कोई दाल बीन रही थी तभी राज ने उससे पूछा ,"अब तुम्हें क्या हुआ है ?तुम क्यों मुंह फुलाकर बैठी हो।"


नयना ने एक स्थिर दृष्टि से राज की तरफ देखा और फिर से अपने काम में लग गयी। राज ने दोबारा फिर से पूछा,"क्या बात मोटी नहीं बताना चाहती है क्या कि क्यों मुंह फुलाकर बैठी है।"


"राज पता नहीं क्यों जो शास्त्री जी कल रात बातें बता रहे थे वो बातें ऐसा लग रहा है जैसे मेरे साथ पहले भी घटित हो चुकी है।"


राज के कान खड़े हो गये । इसका मतलब नयना को भी अपना पिछला जन्म याद आ रहा है या हो सकता है जब हम किसी कहानी के साथ जुड़ाव महसूस करते हैं तो हम उसके पात्रों में अपने आप को देखने लगते हैं कहीं ऐसा ही नयना को भी लग रहा होगा।

वह प्रत्यक्ष में बोला,"नयना यार तुम सोचती बहुत हो मेरे बारे में जब ही तो तुम्हें ऐसा लगता है ।अब ऐसा करो सोचना छोड़कर गर्मागर्म चाय ले आओ दोनों बाहर लान में बैठकर पियेंगे।देखो मौसम भी कितना सुहावना हो रहा है।"


नयना किचन में चाय बनाने चली गई और देव बाहर लान में अखबार पढ़ने लगा। वह अखबार पढ़ते हुए सोच रहा था कि कितने अच्छे हैं सब लोग अंकल , नयना सभी तो अच्छे हैं ।मैं आज नयना को कोई काम कह दूं तो अपने सारे काम छोड़कर वो मेरा काम करने दौड़ती है ।पर फिर भी अंकल को ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी थी जो उन्होंने परी से ये सब करवाया।वैसे तो परी की आंखों में अथाह समुद्र है प्यार का मेरे लिए फिर उसने भी ऐसा क्यों किया? 

बहुत से क्यों और कैसे राज के आगे पीछे घुम रहे थे जिसके उत्तर जानने के लिए वो बेसब्री से शास्त्री जी का इंतजार कर रहा था।


कहानी अभी जारी है……………….



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